ठीक होने के बाद तीन महीने तक बना रहता है कोरोना वायरस का खतरा

ठीक होने के बाद तीन महीने तक बना रहता है कोरोना वायरस का खतरा

सेहतराग टीम

COVID-19 अमेरिका के सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने कहा है कि अभी तक ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है, जिसमें कोरोना वायरस से संक्रमण के बाद स्वस्थ हुआ व्यक्ति पुन: संक्रमित हुआ हो। अमेरिका के शीर्ष स्वास्थ्य निकाय ने कहा है कि ठीक होने वाले लोगों में पहली बार रोग की पहचान होने के बाद से निम्न स्तर का वायरस करीब तीन महीने तक शरीर में रहता है। हालांकि ऐसे लोग दूसरों को वायरस नहीं दे सकते हैं। यही वह कारण है, जिसके चलते लोग तीन महीनों के दौरान जांच में पॉजिटिव आ जाते हैं। सीडीसी ने 15 विभिन्न अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों के आधार पर यह बात कही है।

पढ़ें- सामान्य सर्दी जुकाम है या कोरोना वायरस के लक्षण, अब आसानी से होगी पहचान

पुन: संक्रमण की पुष्टि नहीं: सीडीसी ने कहा है कि किसी भी व्यक्ति का इस वायरस से पुन: संक्रमित होने का कोई भी मामला सामने नहीं आया है। सीडीसी का यह कहना उन संभावनाओं को विराम दे सकता है, जिनमें लोगों के बीच पुन: संक्रमित होने की बातें आम हैं।

दस दिन बाद दी जा सकती है छुट्टी: सीडीसी ने कहा है कि जिस व्यक्ति में हल्के या मध्यम लक्षण पाए जाते हैं, वह पहली बार पॉजिटिव आने के 10 दिन बाद आइसोलेशन से बाहर आ सकता है। जबकि जिन लोगों में गंभीर लक्षण नजर आते हैं, उन्हें अधिकतम 20 दिनों तक आइसोलेशन में रखने की आवश्यकता होती है। सीडीसी के मुताबिक, अभी तक उपलब्ध डाटा संकेत देते हैं कि कम और मध्यम लक्षणों वाले मरीजों में पहली बार पॉजिटिव आने के बाद 10 दिनों तक ही संक्रामक रहते हैं। वहीं गंभीर बीमारी वाले व्यक्ति 20 दिनों से अधिक संक्रामक नहीं होते हैं।

बीमारी के बाद धीरे-धीरे खत्म होता है प्रभाव: स्वस्थ होने वाले व्यक्तियों में बीमार होने के तीन महीने के बाद तक सार्स-सीओवी-2 आरएनए ऊपरी श्वसन नमूनों में आ सकता है। यद्यपि बीमारी के दौरान बड़े पैमाने पर इसका प्रभाव धीरे-धीरे कम होता है। खासतौर पर उस स्थिति में जब प्रतिकृति सक्षम वायरस (वे जो प्रतिकृति बना सकते हैं और प्रसार कर सकते हैं) को पुन: प्राप्त नहीं किया गया है और उनके संक्रामक होने की संभावना नहीं है। सीडीसी ने कहा है कि अध्ययनों में इस बात का सबूत नहीं मिला है कि चिकित्सकीय दृष्टि से ठीक होने वाले व्यक्ति में वायरल आरएनए दूसरों के लिए सार्स सीओवी-2 में बदलाव कर सकता है।

15 अध्ययनों का सार: सीडीसी ने कहा है कि उसकी सिफारिशें 15 अंतरराष्ट्रीय और अमेरिका में प्रकाशित अध्ययनों पर आधारित हैं। ये अध्ययन बढ़ते संक्रमण, वायरल शेड की अवधि, बिना लक्षण वाले लोगों द्वारा प्रसार और विभिन्न मरीजों के समूहों के बीच प्रसार के जोखिम से जुड़े थे।

शरीर में होता है वायरस: यद्यपि सीडीसी ने यह नहीं कहा है कि स्वस्थ होने वाले लोगों में तीन महीने के लिए इम्यूनिटी विकसित हो गई है। सिर्फ यह कहा है कि तीन महीने के इस समय के दौरान पुन: संक्रमण का कोई मामला सामने नहीं आया है। सीडीसी का कहना है कि तीन महीने के दौरान किसी भी व्यक्ति का टेस्ट कराना अनावश्यक है। यदि टेस्ट पॉजिटिव आता है तो पुन: संक्रमण का मामला नहीं बल्कि यह शरीर में मौजूद वायरस के कारण हो सकता है।

कम हो जाती है वायरस की मात्रा: शोधकर्ताओं ने पाया है कि कोविड-19 के लक्षण विकसित होने के तुरंत बाद नाक और गले में जीवित वायरस की मात्रा काफी कम हो जाती है। सीडीसी ने कहा कि नवीनतम निष्कर्षों ने संक्रमित रोगियों के आइसोलेशन को खत्म करने की परीक्षण-आधारित रणनीति के बजाय लक्षण-आधारित रणनीति पर भरोसा करने के मामले को मजबूत किया है, जिससे जो व्यक्ति संक्रामक नहीं हैं, उन्हें अनावश्यक रूप से अलग- थलग नहीं रखा जाए।

(साभार- जागरण)

 

इसे भी पढ़ें-

क्या नीम के गुण कोरोना को खत्म करने में काम आ सकते हैं? जानने के लिए होगा ह्यूमन ट्रायल

ICMR के शोध में बताया गया- भारतीयों में कोरोना के लक्षण विदेशियों से अलग हैं

Disclaimer: sehatraag.com पर दी गई हर जानकारी सिर्फ पाठकों के ज्ञानवर्धन के लिए है। किसी भी बीमारी या स्वास्थ्य संबंधी समस्या के इलाज के लिए कृपया अपने डॉक्टर की सलाह पर ही भरोसा करें। sehatraag.com पर प्रकाशित किसी आलेख के अाधार पर अपना इलाज खुद करने पर किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति की ही होगी।